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हालिया रिलीज के लिए तैयार फिल्म bombay (बॉम्बे) की निर्मात्री हैं फिरदौस शेख. सनम प्रोडक्शंस इंडिया के बैनर तले बनी इस फिल्म की निर्मात्री फिरदौस से मुलाकात होती है उनके घर पर. उन्होंने 'बॉम्बे' नाम ही क्यों रखा फिल्म का? और क्या है इस फिल्म की कहानी में जिससे प्रभावित होकर वह फिल्म प्रोडक्शन में आई? इसबारे में उनसे चर्चा होती है तो वह एक एक बात पर प्रकाश डालती हैं-
जब मैंने यह फिल्म शुरू किया, लोग मुझसे पूछ रहे थे कि एक फिल्म 'बॉम्बे' नाम से (मणिरत्नम की) पहले आचुकी है फिर मैं दूसरी फिल्म उसी नाम से क्यों बना रही हूं. मेरा जवाब था- एक नाम से बहुत से लोग होते हैं, सबकी अपनी अपनी स्टाइल, रहन सहन और पसंद होती है.एक आदमी को कोई लाइक करता है, दूसरे को कोई और लाइक करता है. मणिरत्नम सर एक कुशल मेकर हैं लेकिन उनकी क्लास ऑडिएंस के अलावा भी ऑडिएंस है, उनका अलग टेस्ट और अलग खुराक है, उसे हम पूरा करेंगे. यह फिल्म एक सामान्य भारतीय दर्शक के मनोरंजन के लिए है जो मुम्बईया है और मुम्बई के तिलस्म को देखना चाहता है. फिरदौस बात जारी रखती हैं. जहां तक मेरी बात है मैं 'बॉम्बे' नाम से ही प्रभावित रही हूं. इस नाम का आकर्षण ही मुझे यहां, इस शहर में और बॉलीवुड में खींचकर लाया है.
सुना है फिल्म के टाइटल 'बॉम्बे' नाम पर सेंसर बोर्ड ने रुकावट डाला था?
कोई बड़ा इश्यू नहीं था. हमारी फिल्म के लेखक-निर्देशक संजय निरंजन जी ने उन्हें याद दिलाया कि हमारी फिल्म की कहानी उस पीरियड की है जब यह शहर 'बॉम्बे' हुआ करता था. शहर का नाम उस घटना- काल के बाद बदला था जो हमारी फिल्म का हिस्सा है. उन्हें समझ आगयी बात और वे हमें बॉम्बे टाइटल दे दिए जो हमारी कहानी और फिल्म का ओरिजिनल नाम था.
बंगलोर से बॉलीवुड में आकर फिल्म का कारबार शुरू करने वाली फिरदौस शेख इससे पहले फिल्म 'थर्ड आई' और 'वन स्टोरी मेनी इंडस' बना चुकी हैं. उनकी फिल्म 'बॉम्बे' चार भाषाओं (हिंदी, कन्नड़, मराठी और तेलुगु) में बनी है. वह एक फिल्म संजय दत्त के साथ शुरू करने की प्लानिंग कर रही हैं. "अभी दूसरे प्रोजेक्ट्स पर बाद में चर्चा करेंगे. इस समय थियेटर के दरवाजे पर पहुच चुकी 'बॉम्बे' ही हमारे लिए गोल है. आपसब दुवा कीजिए."
आपने 'बॉम्बे' में अंडरवर्ड की बात दिखाया है, जैसा फिल्म के पोस्टर से पता चलता है, क्या है कहानी?
निर्मात्री फिरदौस शेख कहती हैं- "अब तो थियेटर में ही देखिए.... कहानी 'बॉम्बे' के '93 के दंगों की पृष्ठ भूमि में है. तब यह महानगर बॉम्बे या बम्बई नाम से ही बुलाया जाता था.उसके बाद 1996 के बाद 'मुंबई' नाम रखा गया. हम उस समय के वारदात को मुंबई कहकर कैसे बुला सकते हैं. यही वजह है हमने नाम पुराना ही रखा है.और, इस नाम मे एक आकर्षण भी है! हमने बॉम्बे दंगे के बाद की गैंगस्टर की लाइफ दिखाया है. जो आज लोग सुनते हैं, वही विजुअल में दर्शक देखेंगे और महसूस करेंगे."
'बॉम्बे' की विशेषता बतानी हो तो क्या कहोगी आप?
बॉम्बे (मेरी फिल्म) या मुम्बई (यह शहर) जो भी कहिए, यह जगह ही वैसी है जो पूरे भारत को रिप्रजेंट करती है. यहां का अंडरवर्ड और यहां की खूबसूरती दोनो पूरे भारत की तस्वीर है. यह एक इंटरनेशनल शहर है जहां न्यूयॉर्क भी बसता है और लंदन भी. जापान भी बसता है और झुमरी तलैया भी.हॉलीवुड की तर्ज पर यहां बॉलीवुड है. आतंक और दहशत का गढ़ है तो प्रेम और भाईचारे की नगरी भी.इसीलिए लोग पूरे देश से यहां काम करने आते हैं.मैं खुद बंगलोर से मुंबई आयी हूं फिल्म बनाने. हमारी फिल्म में सारी बातें हैं हम इस फिल्म से सौ करोड़ से ऊपर का बिजनेस करने की उम्मीद रखते हैं." कहते हुए उनके चेहरे पर संतुष्टि का भाव दिखता है.
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